युवाओं को सेना में जाने से रोक रहा कलर ब्लाइंड रोग

बचपन से पता न होने के कारण अंधकार में जा रहा भविष्य, एक साल तक किए गए शोध में खुलासा

पांच से लेकर दस साल आयु वर्ग के बच्चों की आंखों पर हमीरपुर में हुए शोध में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। पता चला है कि बचपन से ही दो फीसदी बच्चे कलर ब्लाइंड होते हैं। इस बात की जानकारी न होने के कारण बच्चे सेना में जाने की तैयारी करते हैं तथा अभिभावक भी इनके ऊपर लाखों रुपए खर्च करते हैं। अकादमियों में कोचिंग लेने के बाद जब सेना में भर्ती के मापदंड पूरे करने का समय आता है, तो इनकी आंखे कलर ब्लाइंड निकलती है, जिस कारण इनका सेना में जाने का सपना चकनाचूर होने के साथ ही भविष्य में क्या करें इसे लेकर संकट मंडरा जाता है। हमीरपुर में एक साल तक प्राइमरी स्कूलों में पहली से लेकर पांचवीं कक्षा तक के छात्रों की आंखों पर रिसर्च हुआ है।

पता चला है कि 100 फीसदी में से 13 प्रतिशत बच्चे किसी ने किसी आंख की बीमारी से पीडि़त होते हैं। बता दें कि हमीरपुर जिला के भोरंज उपमंडल के 101 प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की आंखों को जांचने के लिए एक प्रोजेक्ट के तहत रिसर्च की गई है। इसमें छह निजी स्कूल तथा 95 सरकारी प्राइमरी स्कूलों को शामिल किया था। वर्ष 2023 में शुरू हुई रिसर्च मार्च 2024 में पूरी हुई। इस रिसर्च को मेडिकल कालेज हमीरपुर के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. अनिल वर्मा ने किया है। उन्होंने शोध कार्य पूरा होने के उपरांत पेपर वर्क ओपथलमोलोजिकल सोसायटी को सौंपा था।

सोसायटी के माध्यम से दिल्ली में आयोजित किए गए राष्ट्र स्तरीय सम्मेलन में इस शोधको सबसे बेहतर आंका गया है। चैकअप के आधार पर बच्चा अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए उचित फील्ड का चयन कर सकता है। 101 प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की आंखों पर हुए शोध में पता चला कि 13 फीसदी बच्चे किसी ने किसी आंख की बीमारी से पीडि़त हैं। इनमें सात फीसदी बच्चों को चश्मे की जरूरत थी।

डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन को सबमिट करेंगे रिपोर्ट

वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. अनिल वर्मा द्वारा आंखों पर किए गए शोध कार्य की रिपोर्ट डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन को भी सबमिट की जाएगी। यदि हिमाचल प्रदेश में प्रथम कक्षा में प्रवेश से ही बच्चों की आंखों का टेस्ट अनिवार्य किया जाता है, तो इससे हजारों बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। सूत्रों की माने तो विदेशों में नियम लागू है कि जो भी बच्चा प्रथम कक्षा में प्रवेश करता है उसकी आंखों की पूरी जांच होती है। इसमें पता चल जाता है कि बच्चे की आंखों में कोई रोग है या नहीं। यदि नहीं नियम भारत वर्ष में लागू हो जाए तो बच्चे बचपन से ही उज्ज्वल भविष्य के लिए बेहतर फील्ड का चयन कर सकेंगे।

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