टोरंटो में खालिस्तान समर्थकों के आगे भारत प्रेमी लोग, दिया करारा जवाब

cकनाडा में दो दिन पहले भारत प्रेमियों ने जिस तरह से खालिस्तान समर्थकों से लोहा लिया, वह अभूतपूर्व था. हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से बौखलाये खालिस्तान समर्थक भारत के प्रति लगातार हमलावर हो रहे थे. अभी दो जुलाई की रात उन्होंने USA के सैन फ्रैंसिस्को स्थित भारतीय Consulate General (वाणिज्य महादूतावास) में आग लगा दी थी. इसकी जिम्मेदारी सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने ली थी. यही नहीं SFJ के मुखिया गरपत सिंह पन्नू ने धमकी दी थी कि 8 जुलाई को भारत के राजदूतावासों का घेराव किया जाएगा. इसी वजह से खालिस्तान समर्थक सिख अपने हाथों में खालिस्तान का झंडा लेकर कनाडा के टोरंटो (TORONTO) स्थित Consulate General के ऑफिस में प्रदर्शन करने गए थे. उनका मकसद वहां भारतीय तिरंगे को जलाना था. लेकिन उनको वहां पर उन भारत-प्रेमियों की भीड़ का सामना करना पड़ा, जो अपने हाथों में तिरंगा पकड़े लहरा रही थी.

खालिस्तान समर्थक यह नजारा देख कर चकरा गए. उनको ऐसे विरोध का सामना पहली बार करना पड़ा. वहां पुलिस भी काफी संख्या में थी. पुलिस ने न सिर्फ खालिस्तान समर्थकों को दौड़ाया, बल्कि बताया गया है, कि उनके हाथ से खालिस्तान का कथित झंडा ले कर उसे कुचला भी. यह भारत द्वारा USA, कनाडा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया को दिए गए विरोध ज्ञापन का असर था. हालांकि अब बाहर प्रवास कर रहे भारतीय लोग भी इस तरह की भारत तोड़ने वाली शक्तियों से परिचित हो चुके हैं. इसलिए उन्होंने खुद मोर्चा संभाला.

मजे की बात यह कि हाथों में भारतीय झंडा ले कर फहराने वालों में सिखों की संख्या भी पर्याप्त थी. वे भी इन खालिस्तान समर्थकों के साथ नहीं हैं. क्योंकि वे जानते हैं, कि खालिस्तान का स्वप्न ही दिखाया जा सकता है. उसका कोई रूट मैप नहीं है. खालिस्तान बनने का कोई आधार भी नहीं है. न धार्मिक न सामाजिक. इसीलिए सिख भी विरोध में आए.

USA में तो पुलिस ने भी खालिस्तान समर्थकों को तितर-बितर किया. वहां पर खालिस्तानी पहले ही सैन फ्रैंसिस्को और कैलिफ़ोर्निया के Consulate General दफ़्तरों में तोड़-फोड़ कर चुके थे, इसलिए पुलिस पहले से ही सतर्क थी. ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया में भी सभी Consulate General के दफ़्तरों और Embassies में सुरक्षा बढ़ी हुई थी. लेकिन कनाडा सरकार का खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरम (Soft) रुख देखते हुए टोरंटो में भारत-प्रेमियों ने खुद मोर्चा ले लिया हुआ था. टोरंटो में भारतीय लोगों ने भारत माता की जय, वंदे मातरम् और हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाया. कनाडा में भारतीय समुदाय द्वारा इस तरह से खड़े हो जाना सभी के लिए विस्मय कारक है. अभी तक कनाडा में गैर सिख भारतीय समुदाय राजनीति से दूर रहता आया है. किंतु इस बार भारतीयों ने दिखा दिया कि यदि कुछ लोग भारत के टुकड़े करना चाहते हैं तो उनके मंसूबे पूरे नहीं होंगे.

ग्रेटर टोरंटो के दो इलाके ऐसे हैं, जहां भारतीय प्रवासी काफी हैं. इनमें से एक है ब्रैम्पटन और दूसरा मिसीसागा है. इनमें से ब्रैम्पटन में पंजाबी हिंदू और सिख आबादी बहुत अधिक है. यहां तक कि वहां पर प्रेम स्वीट्स, राजधानी होटल और ब्रार (BRAR) रेस्टोरेंट के नाम हिंदी और गरमुखी में भी लिखे हैं. मिसीसागा में भारतीय हिंदू, मुसलमान और सिख आबादी है तो साथ में इतनी ही पाकिस्तान के लोगों की भी आबादी भी होगी. यहां बांग्ला देशी और नेपाली भी पर्याप्त संख्या में हैं. इसके अलावा श्रीलंका और भारत की चीनी लोगों की आबादी तथा गुजराती मुसलमान पिकरिंग में हैं. स्कार्ब्रो में चीनी और मुसलमान हैं तथा राजस्थान के हिंदुओं और जैनियों की पर्याप्त संख्या हैं. एक तरह से ग्रेटर टोरंटो के इलाक़े में दक्षिण एशियाई देशों के प्रवासी सर्वाधिक हैं. इनमें सबसे ज़्यादा आबादी मुसलमानों की है. ब्रैम्पटन और मिसीसागा के अलावा सिख प्रवासी कम दिखते हैं.

लेकिन सिख और मुसलमान यहां की राजनीति में काफी एक्टिव हैं. चाहे वे रीजनल म्यूनिस्पैलटी में हों या प्रांतीय संसद अथवा संघीय संसद. इसलिए उनकी आवाज भी अधिक सुनी जाती है. सरकार यहां तीन स्तर पर काम करती है और ये हैं- Federal, Provincial and Municipal इन तीनों की शक्तियां तथा कार्यक्षेत्र भी विभाजित हैं. कोई भी किसी के कार्यक्षेत्र में दखल नहीं कर सकता. इसलिए यहां Municipal सरकार बहुत ताकतवर है. क्षेत्रीय पुलिस बल (Territorial Police) इसी के इशारे पर काम करता है. इस तरह की नगर परिषदें Territorial Government कहलाती हैं. इसके पास स्वास्थ्य, शिक्षा और नागरिक सुरक्षा भी है. कई जगह ये Territorial Municipality मिल कर County या Regional Municipality भी बन जाती हैं. तब उनका अधिकार क्षेत्र भी बढ़ जाता है. और स्थानीय पुलिस इस Regional Municipality के तहत आ जाती है. जैसे ब्रैम्पटन और मिसीसागा Peel Regional Municipality के तहत हैं. इसलिए इनकी पुलिसिंग भी पील क्षेत्र के मेयर के अधीन होगी.

इससे एक दिक्कत यह होती है, कि संघीय सरकार इस रीजनल पुलिस को अपनी तरफ से निर्देश नहीं दे सकती. इसके अतिरिक्त प्रांतीय विधानसभाओं, जिन्हें यहां Provincial Parliament के अधिकार और कार्यक्षेत्र अलग हैं. Provincial Parliament के सदस्यों को MPP कहते हैं. उसके अधीन जो पुलिस बल होता है, उसका मुख्य काम हाइवेज की निगरानी करना है. कनाडा के 10 प्रांतों और तीन रिजर्व क्षेत्रों को अधिकार यहां की संघीय सरकार (Federal Government) देती है. इस मामले में इसके अधिकार Municipal Government से अधिक हैं और आय के क्षेत्र भी.

समस्या यह आती है कि ब्रैम्पटन तो Peel Regional Municipality के अधीन हैं किंतु जिस टोरंटो में Consulate General का दफ्तर है, वह Toronto Municipality के अधीन है, इसके मेयर हैं जॉन टोरी. जबकि ब्रैम्पटन क्षेत्र के मेयर पैट्रिक ब्राउन हैं और डिप्टी मेयर हरकीरत सिंह, जो कि पगड़ीधारी सिख हैं. ब्राउन को सिख भी वोट करते हैं और हिंदू भी. अब वे किसके प्रति कड़ाई बरतें.

लेकिन जिस तरह से भारत सरकार लगातार कनाडा पर दबाव बनाए है, उससे कनाडा के प्रधानमंत्री दबाव में तो आए हैं. इसीलिए संघ सरकार की पुलिस Royal Canadian Mounted Police (RCMP) को 8 जुलाई के लिए निर्देश दिए गए थे. भारत की यह कूटनीतिक जीत है. अगर भारत सरकार का विदेश मंत्रालय इन देशों पर अपना दबाव बनाए रहा, तो निश्चय ही USA, कनाडा, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की सरकारें ऐसे तत्त्वों पर दबाव बनाएंगी. अभी एक वर्ष पूर्व 18 सितंबर 2022 को ब्रैम्पटन में खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह हुआ था. इसमें 10 हजार पगड़ीधारी सिखों ने भाग लिया था. तब भारत सरकार के तीव्र विरोध के बावजूद कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की और जनमत संग्रह (Referendum) हो जाने दिया था. इसी बीच पिछले दिनों इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी (IFFRAS) ने खालिस्तान आंदोलन पर अपनी एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें इसको भारत, पश्चिमी देश और सिखों के लिए इसे एक जटिल खतरा बताया है. तब से इन देशों में बेचैनी बढ़ी है.

रिपोर्ट में सबसे खतरनाक बात यह बताई गई है कि खालिस्तान आंदोलन को मुस्लिम ब्रदरहुड वाले लोग भी सपोर्ट कर रहे हैं. धर्म के आधार पर किसी स्वतंत्र राष्ट्र की मांग लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विरुद्ध है. इसके पीछे असली खेल पाकिस्तान का भी है, जो 1971 का बदला भारत से लेना चाहता है. उसका मकसद है भारत को बांटना. एक रिपोर्ट यह भी है कि इंग्लैंड और USA में भारतीय दूतावासों पर जो हमले हुए, उनमें पाकिस्तानी भी शरीक थे. यही वजह है, कि भारत-प्रेमी सिख भी इस आंदोलन के खिलाफ हैं.

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