वाटर सेस मामले की याचिकाओं पर सुक्खू सरकार ने कोर्ट में दिया जवाब, 16 अगस्त को अगली सुनवाई

 वाटर सेस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका के मामले में हिमाचल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान हिमाचल सरकार ने कोर्ट में अपना जवाब पेश किया है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में वाटर सेस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं का राज्य सरकार ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है।

शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को बताया गया कि पानी के उचित प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को नियम बनाने की शक्तियां प्रदान की है। प्रदेश के पानी के स्रोतों का सही प्रबंधन के लिए सरकार ने वैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए वाटर सेस अधिनियम बनाया है।

16 अगस्त को होगी अगली सुनवाई

मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 16 अगस्त को निर्धारित की है। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के समक्ष भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी है।

एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने दलील दी है कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 फीसदी बिजली मुफ्त देती हैं। इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है।

वाटर सेस वसूलने का लगा आरोप

25 अप्रैल 2023 को भारत सरकार ने पाया था कि कुछ राज्य भारत सरकार के उपक्रमों पर सेस वसूल रहे है। भारत सरकार ने राज्य के सभी मुख्य सचिवों को हिदायत दी थी कि भारत सरकार के उपक्रमों से वाटर सेस न लिया जाए। इसके बावजूद भी राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों की अनुपालना नहीं कर रही है।

इससे पहले प्रदेश में निजी जल विद्युत कंपनियों ने भी हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी है। निजी जल विद्युत कंपनियों ने आरोप लगाया गया है कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाया जाना संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।

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