शिमला डेवलपमेंट ड्राफ्ट प्लान के तहत निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

शिमला डेवलपमेंट ड्राफ्ट प्लान के तहत हो रहे निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। अदालत ने ड्राफ्ट प्लान पर दर्ज आपत्तियों को निपटाने के बाद प्लान को अंतिम रूप देने के आदेश दिए हैं। स्पष्ट किया है कि अंतिम प्लान के राजपत्र में प्रकाशित होने से एक महीने तक इसे लागू न किया जाए। ड्राफ्ट प्लान के तहत हो रहे निमार्ण को सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट के ध्यान में लाने की स्वतंत्रता दी है। अदालत ने हाईकोर्ट को निर्देश दिए हैं कि अवैध निर्माण को चुनौती देने वाली याचिकाओं का जल्द निपटारा किया जाए। अदालत ने मामले की सुनवाई 12 जुलाई को निर्धारित की है। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशाें के कारण शिमला डेवलपमेंट ड्राफ्ट प्लान को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। बताया गया कि वैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करते हुए सरकार ने विशेषज्ञों की सिफारिशों के आधार पर यह प्लान 8 फरवरी 2022 को बनाया गया था।

11 फरवरी 2022 को इस बारे में आम जनता से आपत्ति और सुझाव मांगे गए। निर्धारित 30 दिन के भीतर 97 आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए। 16 अप्रैल 2022 को राज्य सरकार ने वर्ष 2041 तक 22,450 हेक्टेयर भूमि के लिए इस ड्राफ्ट प्लान को बनाया था। सरकार की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ड्राफ्ट प्लान पर दर्ज आपत्तियों का निपटारा कर इसे अंतिम रूप दिया जाए। शिमला डेवलपमेंट प्लान को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अवैध करार दिया था। इस निर्णय को हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील के माध्यम से चुनौती दी है। यह मामला हिमाचल हाईकोर्ट में भी लंबित था। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट में लंबित इस मामले की फाइल तलब की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर 2022 को आदेश दिए हैं कि हिमाचल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हिमाचल सरकार के लंबित मामलों पर एक साथ सुनवाई की जाएगी। 3 को मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि शिमला शहर और प्लानिंग एरिया में भवन निर्माण के नियमों में राहत देने के लिए सरकार ने सिटी डेवलपमेंट ड्राफ्ट प्लान तैयार किया है।

यह है शिमला डेवलपमेंट प्लान

एनजीटी ने साल 2017 में शिमला शहर के कोर और ग्रीन एरिया में भवन निर्माण पर रोक लगा दी थी। शहर और प्लानिंग एरिया में सिर्फ ढाई मंजिल भवन निर्माण की छूट थी। सरकार ने इन पाबंदियों से राहत देने के लिए टीसीपी विभाग से नया डेवलपमेंट प्लान तैयार करवाया था। इसमें शहर के कोर और ग्रीन एरिया में पाबंदी हटाने का प्रावधान था। प्लानिंग एरिया में ढाई मंजिला भवन निर्माण की शर्त भी हटाने का फैसला लिया था। इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने भी मंजूरी दे दी थी। विधि विभाग इसकी अधिसूचना जारी करने वाला था कि इससे पहले ही एनजीटी ने प्लान पर रोक लगा दी थी। बाद में एनजीटी ने इस प्लान को अवैध करार दिया था।

लंबित स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की हाईकोर्ट ने मांगी ताजा रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्मार्ट सिटी मिशन के तहत शिमला में बड़ी परियोजनाओं के निर्माण न होने पर कड़ा संज्ञान लिया है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने नगर निगम शिमला को आदेश दिए कि वह इस पर ताजा स्टेट्स रिपोर्ट दायर करें। अदालत ने मामले की सुनवाई 25 मई को निर्धारित की है।  नमिता मनिकटाला की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि शिमला शहर में लंबित वन मंजूरी के कारण छह बड़ी परियोजनाओं का काम लटका हुआ है। इसमें लक्कड़ बाजार में लिफ्ट और एस्केलेटर, जाखू मंदिर के लिए एस्केलेटर, संजौली से आईजीएमसी तक स्मार्ट पथ, खलीनी में वेंडिंग जोन, कृष्णा नगर के कंबमीयर नाले का जीर्णोंधार और ढली क्षेत्र को चौड़ा करने इसमें शामिल था।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये परियोजनाएं शिमला शहर के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनके निर्माण से शहर के लोगों की जिंदगी संवर जाएगी।  शिमला शहर ट्रैफिक समस्या से जूझ रहा है। यदि ये परियोजनाएं पूरी होती हैं तो निश्चित रूप से लोगों के जीवन को आसान बनाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा।  याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार के पर्यावरण विभाग सहित प्रदेश के मुख्य सचिव, नगर निगम शिमला और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट मिशन के निदेशक को प्रतिवादी बनाया है। अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता ने यह याचिका 22 जून 2021 को प्रकाशित खबर के आधार पर दायर की थी। अदालत को बताया कि उसके बाद अब इस मामले पर सुनवाई हो रही है, जबकि नगर निगम ने इस मामले में ताजा रिपोर्ट दायर नहीं की है।

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