40 साल पहले आतंकियों से लिया लोहा, अब निशाने पर गैंगस्टर, पंजाब पुलिस ने बुलेट प्रूफ ट्रैक्टरों पर फिर जताया भरोसा

पंजाब पुलिस  ने 40 साल पहले आतंकवाद के दौर में जो बख्तरबंद बुलेट प्रूफ ट्रैक्टर बनाऐ थे, उन्हें एक बार फिर से आतंकियों और गैंगस्टरों से निपटने के लिए तैनात किया गया है. पंजाब पुलिस ने इस तरह के 50 बुलेट प्रूफ मोडिफाइड ट्रैक्टरों को राज्य में तैनात किया है. ये खास बख्तरबंद ट्रैक्टर आतंकवाद से निपटने और गैंगस्टरों के साथ होने वाली मुठभेड़ों में पुलिसकर्मियों की कीमती जानें बचाने के काम आएगा. आतंकवाद के दौर में अपनाई गई देसी तकनीक को एक बार फिर से पंजाब पुलिस ने अपने बेड़े में शामिल किया है. पहले चरण में ये ट्रैक्टर 9 जिलों- मोहाली, रोपड़, पटियाला, मोगा, फिरोजपुर, भटिंडा, गुरदासपुर, जालंधर और अमृतसर में भेजे गए हैं. पंजाब पुलिस के मुताबिक इसके बाद पाकिस्तान के साथ लगने वाले बॉर्डर के इलाकों के जिलों में भी स्थाई तौर पर इन बख्तरबंद ट्रैक्टरों की तैनाती की जाएगी.

पिछले कुछ दिनों में ऐसे मामले सामने आए हैं जब आतंकी और गैंगस्टर पुलिस के साथ जारी मुठभेड़ के दौरान जंगलों या खेतों में ऐसी जगह छुप जाते हैं, जहां गाड़ियों के साथ पहुंचना पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए संभव नहीं होता. ऐसे में अगर पुलिस पैदल ही उस जगह के नजदीक पहुंचती है, तो दूसरी तरफ से लगातार फायरिंग की जाती है. जिसमें बुलेट प्रूफ जैकेट पहने होने के बावजूद पुलिसकर्मियों की जान का खतरा बन जाता है. पंजाब पुलिस के मोहाली में तैनात डीएसपी अमरप्रीत सिंह ने बताया कि पंजाब पुलिस के इन ट्रैक्टरों की खास बात यह है कि उनके ऊपर बुलेटप्रूफ मोटे गेज की चादर लगाई गई है. इसके जो शीशे हैं वह भी बुलेट प्रूफ हैं, ताकि आतंकी और गैंगस्टरों से एनकाउंटर के दौरान होने वाली फायरिंग और कम इंटेंसिटी के धमाकों से अंदर बैठे पुलिसकर्मियों का कोई नुकसान नहीं पहुंचे.

हर हाल में गैंगस्टरों तक पहुंचाएगा बुलेट प्रूफ ट्रैक्टर

इस ट्रैक्टर में तीन से चार पुलिस कर्मचारी अत्याधुनिक हथियारों के साथ बैठ सकेंगे और मुठभेड़ के दौरान अंदर से ही फायरिंग का जवाब दे सकेंगे. पानी भरे खेतों, जंगलों, उबड़-खाबड़ रास्तों और खेतों में आसानी से चलकर ये ट्रैक्टर छिपे हुए गैंगस्टरों और आतंकियों तक पंजाब पुलिस के जवानों को पहुंचा सकते हैं. ट्रैक्टरों को बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियों में तब्दील करने की ये देसी तकनीक करीब 40 साल पुरानी है. जब आतंकवाद के दौर में खेतों और निर्जन जगहों पर छिपने वाले आतंकवादियों से मुकाबला करने के लिए इसी तरह की गाड़ियां ट्रैक्टरों पर तैयार की गई थी.

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