नन्ही मास्टरनी झूम-झूम कर पढ़ाती है क, ख, ग, बच्चों से लेकर महिलाएं भी ले रहीं क्लास
जिले में एक ऐसी पाठशाला है, जिसका संचालन चार खंभे और टीन से बने शेड के नीचे किया जाता है. यहां पढ़ाने कोई योग्य शिक्षक या कार्यकर्ता नहीं, बल्कि नन्ही मास्टरनी है, जो प्रतिदिन सुबह होते ही हाथ में छड़ी लेकर पहुंच जाती है. वह अपने हम उम्र के बच्चों के साथ साथ बड़ों को भी क, ख, ग का पाठ पढ़ाती है. इस दौरान गलती होने पर समझाती भी है. खास बात तो यह है कि महज तीन साल की मास्टरनी को झूमते हुए तोतली बोली में पढ़ाते देख मार्ग से गुजरने वाले राहगीरों के पैर ठिठक जाते हैं. जी हां! यह बात आपको अटपटी जरूर लगेगी, लेकिन शत प्रतिशत सही है. हम बात कर रहें हैं, कोरबा विकासखंड के ग्राम पंचायत लेमरू के आश्रित ग्राम भुडूमाटी की.
बालको-लेमरू मार्ग में कॉफी पाइंट से कुछ ही दूर मुख्यमार्ग में स्थित भुडूमाटी में पहाड़ी कोरवा जनजाति के करीब 15 परिवार निवास करते हैं. ऐसे तो गांव में हर उम्र के बच्चे हैं, लेकिन लगभग 12 बच्चे ऐसे हैं, जिनकी उम्र एक से छह साल के बीच है.
महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा शून्य से छह, साल के बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन करीब पांच किलोमीटर दूर किया जा रहा है. भुडूमाटी में रहने वाले पहाड़ी कोरवाओं के बच्चे कम उम्र में शिक्षा के प्रति जागरूक तो हैं, लेकिन अधिक दूरी होने के कारण उनके लिए प्रतिदिन आंगनबाड़ी केंद्र जा पाना संभव नहीं है.
सेवाधाम के सदस्यों की पहल
पहाड़ी कोरवाओं के लिए चाहकर भी बच्चों को आंगनबाड़ी भेजने में खुद को असहज महसूस करते हैं. ऐसी स्थिति में बच्चे शिक्षा से दूर होते जा रहे थे. ग्रामीणों नें अपने बच्चों को खेल खेल में शिक्षा देने तरकीब को खोज निकाला, लेकिन उनके सपनों को साकार करने में देवपहरी सेवाधाम के सदस्यों ने पहल की. उनकी पहल पर लकड़ी के खंभे और टीनयुक्त शेड तैयार किया गया. इस शेड को वर्णमाला व पहाड़ा का चार्ट तथा ब्लैक बोर्ड लगाकर पाठशाला का रूप दिया गया, जहां प्रतिदिन सुबह होते ही बच्चों के साथ साथ गांव की महिलाएं भी पहुंच जाती है.
नन्ही मास्टरनी की पाठशाला
इसके साथ ही क्लास शुरू हो जाती है. पहाड़ी कोरवाओं के बच्चों में एक तीन साल की बालिका है, जो मास्टरनी की भूमिका निभाती है. वह हाथ में छड़ी लेकर न सिर्फ बच्चों को बल्कि बड़ों को भी क, ख, ग का पाठ पढ़ाती है. आमतौर पर तीन साल की उम्र में बच्चे लोगों को देख डर जाते हैं, लेकिन नन्ही मास्टरनी पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है. उसका झूमझूम कर अपनी तोतली बोली में छड़ी की मदद से पाठ पढ़ाना मार्ग से गुजरने वालों का मनमोह लेता है. इस मार्ग से गुजरते समय लोग चाहे कितनी भी जल्दी में हों, उनका थोड़ी देर नन्ही मास्टरनी को पढ़ाते देख रूकना तय है.