दवा कंपनियां डॉक्टरों को फ्री गिफ्ट देकर नहीं करवा सकती प्रचार, विशेषज्ञों से जानें इसके नफे नुकसान

दवा कंपनियां अक्सर अपनी दवाओं की बिक्री को बढ़ावा देने, लोगों तक पहुंच बनाने के लिए डॉक्टरों को फ्री उपहार देती है. उपहार देने में समस्या नहीं है लेकिन इसकी आड़ में कई बार कंपनियां बढ़ा चढ़ाकर अपनी दवाओं का प्रचार करती है. जैसे ये दवा लेंगे तो आपके बाल झड़ने बंद हो जाएंगे तो फलाने दवा से मोटापा कम हो जाएगा. लिहाजा इसका सीधा मरीज के स्वास्थय पर पड़ता है. पर अब से ऐसा नहीं हो पाएगा. दवा कंपनियों के लिए केंद्र सरकार ने सख्त गाइडलाइंस बना दी है. सरकार ने फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस यानी यूसीपीएमपी के लिए एक समान संहिता बनाई है.

इसमें कहा गया है कि कोई भी फार्मा कंपनी या उसका एजेंट किसी भी डॉक्टर और उनके रिश्तेदारों को कोई उपहार नहीं देगा. इस समय देश में भारतीय चिकित्सा परिषद नियम 2002 से लागू है. जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि डॉक्टर्स फार्मास्यूटिकल कंपनियों से गिफ्ट, यात्रा सुविधाएं, नकद वगैरह नहीं ले सकते हैं. लेकिन इसके साथ दिक्कत यह है कि ये नियम सिर्फ डॉक्टरों पर ही लागू होते हैं, दवा कंपनियों पर नहीं. यही वजह है कि जब इस तरह के मामले सामने आते हैं, तो डॉक्टर्स पर कई बार एक्शन हो जाता है, उनके लाइसेंस कैंसिल कर दिए जाते हैं लेकिन फार्मा कंपनियां बच निकलती हैं.

फार्मा कंपनी को एथिक्स कमिटी बनानी होगी

सरकार ने साल 2014 में यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज को लेकर दिशा निर्देश जारी किए थे, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्य नहीं था. लेकिन अब सरकार ने इसे अपनाने के लिए बाध्य कर दियाहै. पहले तो सभी फार्मास्युटिकल्स कंपनियों को खुद पर ही लगाम लगानी होगी. फार्मा एसोसिएशन को एक एथिक्स कमिटी बनानी होगी जिसमें कम से कम 3 से 5 सदस्य होने जरूरी हैं. इस बात का खासा ध्यान रखना होगा कि एक सदस्य फार्मा का सीईओ ही हो.

अपनी वेबसाइट पर यह जानकारी भी सार्वजनिक करनी होगी कि किस कंपनी के खिलाफ किस तरह की शिकायत आई और उस पर कितनी जल्दी अमल किया गया. एक और जरूरी बात यह है कि इन जानकारियों को कम से कम 5 साल से पहले हटा नहीं सकते. शिकायत की सुनवाई कर रही एथिक्स कमेटी को शिकायत मिलने के 90 दिन के अंदर अपना फैसला सुनाना होगा. अगर फार्मा कंपनी के खिलाफ मामला साबित हो जाता है तो एथिक्स कमिटी उसे कंपनी के खिलाफ सीमित दायरे में कार्रवाई करने के लिए आजाद है. अगर दोनों में से कोई भी पक्ष एथिक्स कमेटी के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वह अपेक्स कमेटी के पास जा सकता है जिसकी अध्यक्षता सरकार के फार्मास्यूटिकल विभाग के सेक्रेटरी करेंगे.

किन किन चीजों पर है मनाही?

पहला- फार्मा कंपनियां अगर किसी दवा का या प्रोडक्ट का प्रमोशन करना चाहती हैं तो वह नियम कानून के दायरे में रहकर ही करें. बिना मंजूरी लिए अपने प्रोडक्ट की दूसरी कंपनी के प्रोडक्ट के साथ तुलना नहीं की जा सकती.

दूसरा- फार्मा कंपनियां डॉक्टरों को फ्री गिफ्ट्स नहीं दे सकती. इसे डिटेल में समझे तो फार्मा कंपनियां खुद या फिर किसी एजेंट की मदद से किसी भी डॉक्टर या उनके परिवार, दोस्त या फिर रिश्तेदारों को किसी भी तरह के फ्री गिफ्ट्स या पैसे नहीं दे सकती.

तीसरा- फार्मा कंपनिया साथ ही विदेश में सेमिनार के नाम पर डॉक्टर को ट्रैवल करने के लिए भी नहीं बोल सकती. हालांकि फार्मा कंपनी डॉक्टर के साथ मिलकर एजुकेशनल सेमिनार और कॉन्फ्रेंस कर सकती है. लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा कि ऐसा आयोजन देश से बाहर न हो.

चौथा- अगर कंपनी सेमिनार या कॉन्फ्रेंस का कार्यक्रम रखती भी है तो पूरे आयोजन का हिसाब किताब बताना जरूरी होगा. मतलब कितना खर्च हुआ और वह खर्च कहां से किया गया इसकी टोटल जानकारी देना अनिवार्य है वो भी सार्वजनिक तौर पर अपनी वेबसाइट पर जारी करनी होगी.

पांचवा- कई बार आपने देखा होगा कि पुरानी दवाओं की नई पैकेजिंग करके इसे बिल्कुल ही नई दवा कह कर बताया जाता है. पर अब ऐसा करने पर मनाही है. फार्मा कंपनी किसी पुरानी दवा को नई दवा कहकर प्रचार नहीं कर सकती है.

छठा- अगर दवा बेच रहें तो आपको पूरी डिटेल्स बतानी पड़ेगी. जैसे दवा को फार्मी कंपनी सेफ कह रही है तो उसे यह बताना पड़ेगा कि किन मायनों में सेफ है. अक्सर दवा निर्माता कंपनिया कहती है दवा का मरीज के उपर कोई साइड एफेक्ट नहीं होगा लेकिन इस गाइडलाइन के तहत अब बस यह लिख भर देने से काम नहीं चलेगा. प्रूफ देना पड़ेगा.

एक अच्छी शुरूआत है…

हालांकि एक रियायत यह दी गई है कि फार्मा कंपनियां डॉक्टर को डायरी, कैलेंडर, पेन और मुफ्त दवा का सैंपल दे सकती हैं लेकिन उनकी कीमत ₹1000 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इन गाइडलाइंस को पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट शुचिन बजाज एक अच्छी शुरूआत बताते हैं. वो कहते हैं कि, ”इससे भ्रष्टाचार का खात्मा होगा और ट्रांसपेरेंसी आएगी पर इसके साथ असल चुनौती इसे लागू करने में आएगी. भारत नियम कायदे तो अच्छे बनाता लेकिन पालन करने में मात खा जाता है.”

मेडिकल प्रोफेशन में फार्मा कंपनियों का रिश्ता डॉक्टरों के साथ गिव एंड टेक का बन गया है. यानी आप हमारा ये काम कर दो हम बदले में आपका कर देंगे. दूसरी तरफ से देखें तो सिर्फ दवा कंपनियां नहीं बल्की कई मैन्युफैक्चर अपने प्रोडक्ट की बिक्री करते हैं. वैसे ही डॉक्टर्स को भी अपना ज्ञान बढाने के लिए सेमिनार अटेंड करना पड़ता है ताकि वो नई चीजे सीख सकें. पिपल्स हेल्थ ऑर्गनायजेशन और ऑर्गनाइजड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल इश्वर पी गिलादा कहते हैं कि, ”जिन सेमिनार वर्कशॉप को सरकार ने करने पर पाबंदी लगाई है वैसे कार्यक्रमों में शामिल होना डॉक्टर के लिए जरूरी होता है. क्योंकि हर डॉक्टर को हर 5 साल में 30 क्रेडिट आवर जमा करना होता है मेडिकल काउंसिल का रेजिस्ट्रेशन रेन्यू कराने के लिए. 30 क्रेडिट आवर के लिए 120 घंटे का सेमिनार अटेंड करना पड़ता है. अब सरकार को इस तरह के वर्कशॉप करवाने चाहिए जो होता नहीं है और इसलिए फार्मा कंपनिया इस तरह के आयोजन करवाती है”

डोलों 650 के निर्माता पर लगे थे गंभीर आरोप

डोलो 650 का नाम तो आपने सुना ही होगा. बुखार के इलाज में कारगार मानी जाती है. कुछ लोग आपको ऐसे भी मिल जाएंगे जो आम बदन दर्द में भी इसे गटका लेते हैं. डोलो 650 का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर भारत में कोरोना काल के दौरान हुआ था. लेकिन 2022 में इस दवा को बनाने वाली कंपनी माइक्रो लैब्स को लेकर चौंकाऊ बातें सामने आई थी. आरोप लगाए गए हैं कि ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए उसने डॉक्टरों को प्रभावित कर यह दवा लिखवाई. इसके लिये कथित तौर पर डॉक्टरों को एक हजार करोड़ रुपये के उपहार बांटे गए. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था.

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