शिल्पी-गौतम मर्डर केस: कांगड़ा के अनसोली गांव के ए.बी. राजवंश ने राष्ट्रीय मानवाधिकार को भेजी जनहित याचिका

बिहार की राजधानी पटना में 2 जुलाई 1999 को शिल्पी जैन और गौतम सिंह की साजिशन हत्या हुई थी। पुलिस और सीबीआई की तहकीकात और उस आधार पर बंद इस केस फ़ाइल में हत्या का कहीं जिक्र नहीं है इसलिए उस आधार पर यह आत्महत्या का मामला है।

दूसरी तरफ  ए.बी. राजवंश निवासी गांव अनसोली तहसील व जिला कांगड़ा ने इस प्रकरण में रूचि दिखाते हुए कुछ एक साक्ष्य दस्तावेज इकठ्ठे करके, मानवता के नाते एक जनहित याचिका राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को प्रेषित करते हुए इस प्रकरण में पुनः उच्चस्तरीय जांच की गुहार की है ताकि दोषी अभियुक्त सलाखों के पीछे पहुंचाए जा सकें। राजबंश की याचिका क्राइम तक यू ट्यूब चैनल एपोसोड 55 में शमस ताहिर खान के द्वारा दी गई कहानी के दृष्टिगत हैं।

इस प्रकरण की प्रारम्भिक पुलिस रिपोर्ट ही संदिग्ध रही है क्योंकि बिहार पुलिस ने बिना पोस्टमॉर्टम करबाए ही यह प्रमाणित किया था कि इन दोनों ने, जहर खा कर आत्महत्या की है। तीन जुलाई 1999 को रात्रि काल में पोस्टमॉर्टम हुआ और रात को ही गौतम का आनन फ़ानन में, घर बालों को बताये बिना अंतिम संस्कार कर दिया गया था।

काबिले गौर है कि इन दोनों नौजवानों के शव एक जेन कार में पुलिस अधीक्षक कार्यालय पटना के पास ही एक गैराज में मिले थे। पुलिस के मौका बारदात पर पहुंचने से तक़रीवन आधे घंटे बाद, तत्कालीन बिहार राज्य की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई साधू यादव वहां पहुंचे थे। साधु यादव वहां किस की सूचना से पहुंचे यह कई प्रश्नों को पैदा करता है, दूसरा पुलिस को इस बारे किसने सुचना दी थी। पुलिस ने मौका पर कार से फिंगर प्रिंट इकठे नहीं किये, इस कारण भी पुलिस कार्यबाही शक के दायरे में आती है।

तत्कालीन मीडिया में प्रकाशित और “Crime Tak EP 55 “के अनुसार, इस प्रकरण का अन्य मुख्य पहलु यह है कि शिल्पी और गौतम आपस में मित्र थे, उस समय शिल्पी कंप्यूटर का प्रशिक्षण ले रही थी। गौतम राजनीति से जुड़ना चाहता था, इसलिए साधु यादव के सम्पर्क में था तो इस प्रकार शिल्पी भी साधु यादव से परिचित थी। 2 जुलाई 1999 को जब शिल्पी अपनी क्लास हेतु रिक्शे से जा रही थी तो कोई व्यक्ति शिल्पी को इस बहाने कार में बैठने में सफल रहा कि गौतम ने उसे कहीं बुलाया है। यह कार वाला व्यक्ति शिल्पी और गौतम का पूर्व परिचित था। इसके बाद जैसे ही गौतम को मालूम हुआ कि शिल्पी को बहीं एक बदनाम गेस्ट हॉउस में ले जाया गया है तो तत्काल गौतम उस गेस्ट हाउस में पहुंचा तो गौतम ने शिल्पी से जोर जबरदस्ती होती देखी जिसका गौतम ने पुरजोर विरोध किया और परिणाम में दोनों की हत्या कर दी गई। फिर एक जेन कार में दोनों को डाल कर 3 जुलाई 1999 को  बाकी कार्रवाई हुई।

मौके पर शिल्पी के वदन पर केवल ऊपर के हिस्से में गौतम की कमीज थी और गौतम भी अर्धनंगन हालत में था l अगर पुलिस कार्यबाही पर भरोसा करें तो यह कैसे हो सकता है कि दी बालिग़ आत्महत्या करने से पहले अर्धनंगन क्यों होंगे? यह प्रकरण बिहार पुलिस से होते हुए सी बीआई तक पहुंचा लेकिन सीबीआई की जांच भी बिहार पुलिस के नक्शे कदम पर रही और प्रकरण बंद कर दिया गया।

इस प्रकरण में तहकीकात कर दौरान साधु यादव ने डी एन ए जांच हेतू अपना खून का नमूना देने हेतु इंकार किया गया था। शिल्पी के पोस्टमॉर्टम और फॉरेनसिक जांच में यह सपष्ट हुआ था कि शिल्पी अंदर के वस्त्रों में एक अधिक व्यक्तियों के सीमन के निशान थे, जिन्हें बाद में पसीने कर निशान बताया गया था।

शिल्पी के भाई ने जब इस प्रकरण बारे विभिन्न स्तरों पर न्याय हेतू प्रयास शुरू किये तो उसका भी अपहरण हो गया, फिर छूटने पर वह भी खामोश हो गया। उस समय साधू यादव की दवंगई नेतागिरी का बोल बाला था क्यों की उसकी बहन खुद मुख्यमंत्री बिहार थी।

बर्ष 2021 में, साधु यादव के सगे भान्जे तेजस्वी यादव ने सार्वजानिक तौर पर साधु यादव को कहा कि ” तुम शिल्पी और गौतम के हत्यारे हो “, यह वक्तव्य बाकायदा रिकॉर्ड पर है। भांजे तेजस्वी यादव की इस बात को यूं बल मिलता है कि इस हत्याकांड में तहकीकात के बक्त साधू यादव ने अपने खून का नमूना देने के लिए क्यों इंकार किया था। इंकार वही करेगा जो इस कांड में सहभागी होगा।

इस जनहित याचिका में, संबंधित प्रकरण में उच्च स्तरीय और निष्पक्ष जांच की मांग के साथ मृतक युवाओं के परिवारों की सुरक्षा, आर्थिक सहायता हेतु और समस्त जांच मानवाधिकार आयोग की देख -रेख में किये जाने हेतू बिशेष तौर पर निवेदन किया गया है।

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